थार मुस्लिम एजुकेशन वेलफेयर सोसाइटी ने स्वतंत्रता सैनानी रहमान को याद कर सलामी पेश ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ बेखौफ बगावत करते रहे हबीबउर रहमान : कोटवाल संवाददाता बाड़मेर बाड़मेर। मुल्क की आजादी में कई क्रांतिकारियों, स्वतंत्रता सेनानियो सहित आजादी के मतवालों का योगदान रहा। उनमें से आजादी के नायक हबीबउर रहमान लुधियानवी के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। खिलाफत और असहयोग आंदोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने और जिंदगी के अनमोल 14 साल कारागार में बिताने के बावजूद वे बेखौफ होकर ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ बगावत करते रहे। यह बात थार मुस्लिम एजुकेशन वेलफेयर सोसायटी के उपाध्यक्ष एवं वरिष्ठ अध्यापक रफीक मोहम्मद कोटवाल ने स्थानीय शास्त्री नगर स्थित निजी विद्यालय में आयोजित हबीबउर रहमान की स्मृति दिवस पर आयोजित आजादी के नायक कार्यक्रम के दौरान कही। इस अवसर पर नेहरू कांग्रेस ब्लॉक अध्यक्ष शाह मोहम्मद कोटवाल ने कहा कि समय समय पर मुल्क की आजादी के नायकों को याद कर उनकी जीवनी व इतिहास को थार मुस्लिम एजुकेशन वेलफेयर सोसायटी द्वारा जीवंत रखने का बेहद अनुकरणीय कार्य किया जा रहा है। जो कि भावी पीढ़ी और युवाओं के लिए बेहद कारगर सिद्ध होगा। विद्यालय के अध्यापक जगदीश सैनी ने बताया कि 1929 में जब क्रांतिकारी भगत सिंह ने केंद्रीय असेंबली में बम फेंके, तब कोई भी उनके परिवार के सदस्यों को पनाह देने के लिए आगे नहीं आया। लोगों के दिलों में अंग्रेजों के जुल्म का जबरदस्त खौफ था। ऐसे समय में हबीबउर रहमान लुधियानवी ने बहादुरी और इंसानियत का परिचय देते हुए एक माह तक अपने घर में जगह दी। कौमी एकता के प्रतीक रहे रहमान: निदेशक मोहम्मद रफीक व संयोजक अबरार मोहम्मद ने हबीबुर रहमान को कौमी एकता का प्रतीक बताते हुए कहा कि ब्रिटिश अफसरों ने फुट डालो राज करो की नीति अपनाते हुए लुधियाना की घास मंडी चौक पर हिंदुओं और मुसलमानों के लिए अलग अलग पानी के घड़े रखकर नफरत के बीज बोए गए। किंतु लुधियानवी ने इस नापाक चाल को नाकामयाब बना दिया। उन्होंने एक पर्चा बंटवाया और सबका पानी एक है का संदेश देते हुए अलग अलग रखे गए घड़ों को अपने साथियों के साथ तोड़ दिया। नतीजतन ब्रिटिश सरकार को देश भर के सभी रेलवे स्टेशनों पर एक समान घड़ा लगाने के लिए मजबूर कर दिया। सोसाइटी के सचिव इमरान खान ने हबीबुर रहमान की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इनका जन्म 3 जुलाई 1892 को पंजाब के लुधियाना में हुआ। पढ़ाई पूरी करने के बाद हबीब उर रहमान ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ज्वाइन की। खिलाफत और असहयोग आंदोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और जेल भी गए। लेकिन उनका क्रांतिकारी मिजाज नहीं बदला। वे हमेशा बेख़ौफ़ होकर ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ बगावत करते रहे। शाही जामा मस्जिद में तिरंगा फहराया: सोसाइटी के शिक्षा सलाहकार व्याख्याता अनीस अहमद ने कहा कि 1931 में पूरे देश में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ क्रांति तेज हो गई थी। इस बीच शाही जामा मस्जिद के पास लगभग 300 अग्रेज़ी अफसरों और पुलिस बल की मौजूदगी में हबीबुर रहमान ने भारतीय ध्वज तिरंगा फहराया। उनके इस साहस को देखने के बाद अग्रेजों के पसीने छूट गए थे. सभी अफसर उन्हें रोकने में नाकाम रहे थे। जिसके बाद उन्हें फिर से गिरफ़्तार किया गया था। उन्होंने अपने जीते जी देश को आजाद होते देखा। दो मिनट का मौन रख सलामी पेश किया: इस दौरान सोसाइटी सदस्यों, विद्यालय के अध्यापकों सहित बच्चों ने दो मिनट का मौन रख सलामी पेश की। इस अवसर पर विश्यालय के निदेशक मोहम्मद रफीक, प्रधानाध्यक रघुवीर गोदारा, अध्यापक जगदीश सैनी, राजकुमार परमार, चंद्र प्रकाश फुलवारिया, दिलीप जांगिड, सोसाइटी के संयोजक अबरार मोहम्मद, सचिव इमरान खान, हाजी अनीश अहमद सहित कई सदस्य मौजूद रहे।
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