सिर पर शृंगारित मटका लेकर मेघवाल समाज की 16 महिलाएं पहुँची तालाब, भाई बहनों ने एक दूसरे को पिलाया पानी संवाददाता कानु सोलंकी सिवाना। मंगल गीतों का गान करती, सजी-धजी महिलाएं, ढोल की थाप व थाली की झनकार पर नृत्य करते ग्रामीण महिला-पुरूष, परंपरागत वेशभूषा में सजे-धजे महिला- पुरूष, तालाब पर एक-दूसरे को पानी पिलाते सैकड़ो की तादाद में सजे-धजे भाई-बहन, बहनों को चुनड़ी ओढते भाई। कुछ ऐसा ही प्राचीन परंपरा से ओतप्रोत नजारा गुरुवार शाम 5 बजे सिवाना उपखण्ड क्षेत्र के खड़प गांव में नजर आया। कस्बे में कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर मेघवाल समाज की 16 महिलाओं ने समंदर हिलोरने की रस्म अदा की। सिर पर शृंगारित मटका लेकर तालाब पर पहुंची महिलाओं व उनके भाइयो ने पानी में मटके को हिलाया तथा एक दूसरे को अपने हाथों से पानी पिला कर भेंट पूजा अर्पित कर आशीर्वाद स्वरूप स्वास्थ्य जीवन व दीर्घायु की कामना की। गांव में स्थित नागाजी मंदिर के सरली तालाब पर मेघवाल समाज की 16 महिलाओं की ओर से सामाजिक समरसता के तहत समंदर हिलोरने का सामूहिक कार्यक्रम रखा गया। इस दौरान नववस्त्राभूषणों से सजे धजे महिला व पुरुष तालाब पर पहुंचे और पौराणिक परम्परा समंदर हिलोरने का निर्वहन किया। इस दौरान नवविवाहित महिलाएं व उनके भाइयों ने पानी में मटके को हिलाया तथा एक दूसरे को अपने हाथों से पानी पिला आशीर्वाद स्वरूप स्वस्थ जीवन व दीघार्यु की कामना की। वहीं भाइयों ने बहनों को भेंट पूजा अर्पित कर सामाजिक समरसता का संदेश दिया। यहां भाइयों ने बहिन को चुनरी ओढ़ाकर अपने हाथ से तालाब का पानी पिलाया। इससे पूर्व महिलाओं ने विभिन्न परिधानों से सजधज कर तालाब के चारों ओर परिक्रमा लगाते हुए परंपरागत लोक गीत गाए। बना रहा मेले सा माहौल: कार्यक्रम को लेकर लोगों में उत्साह बना रहा। कई दिनों से यहाँ तैयारी चल रही थी। गुरुवार को कार्यक्रम के आयोजन के दौरान अन्य गांवों से भी मेहमान आए, जिससे गांव में मेले सा माहौल बना रहा। तालाब किनारे भी मेले का आलम रहा। रस्म अदायगी के बाद घुंघरी मातर का वितरण किया गया। समदर हिलोरने की रस्म प्रकृति सम्मान का संदेश: मारवाड़ के ग्रामीण अंचल में यह पुरानी परंपरा है जिसमें भाई बहन के स्नेह की प्रतीक परंपरा का निर्वहन किया जाता है। इस परंपरा से पूर्व गांव के प्राचीन तालाब और जलाशयों के साफ सफाई की जाती है। जानकर लोगों ने गुरुवर की आज्ञा से यह प्रथा चलाई की एक साल में 365 दिन होते है और हर एक महिला एक महीने में 365 तगारी मिट्टी खोदेगी तथा नाड़ी-तालाब का निर्माण करेगी। इस प्रकार हर गांव में हजारों महिलाओं ने असंख्य बरसाती पानी सहजने के लिए स्रोतों को बनाकर खड़ा कर दिया। महिलाओं की ओर से किए गए श्रमदान के एवज में भाई अपनी बहनों को आज भी भेंट पूजा अर्पित कर उसके सुखमय जीवन की कामना करता है। इसके बाद भाई अपने बहन के ससुराल में उसके लिए मिठाइयां कपड़े और आदि सामान लेकर आता है। सगे भाई से लेकर धर्म के भाई भी इसमें शामिल होते हैं। कार्यक्रम का उद्देश्य वर्षा जल और पर्यावरण का संरक्षण करना है। सैकड़ों साल की इस परंपरा को इस गांव के लोग आज भी शिद्दत से निभाते हैं।