क्या कांग्रेस अपने 25 सालों के वनवास को इस बार कर पाएगी पुरा...? , कांग्रेस के गोपाराम मेघवाल ने 1998 में जीती थी आखिरी सीट
क्या कांग्रेस अपने 25 सालों के वनवास को इस बार कर पाएगी पुरा...? , कांग्रेस के गोपाराम मेघवाल ने 1998 में जीती थी आखिरी सीट
टाइम्स ऑफ डेजर्ट
संवाददाता कानु सोलंकी
सिवाना । मारवाड़ के इतिहास में सिवाना की रक्षा के लिए कल्ला राठौड़ और हाडी रानी के बलिदान को आज भी याद किया जाता है। लेकिन आजादी के 76 साल में सिवाना का सियासी इतिहास भी बेहद दिलचस्प रहा है। यह वह विधानसभा सीट है जहां पिछले 25 सालों से कांग्रेस को शिकस्त का सामना करना पड़ रहा है, जबकि यहां की जनता ने कांग्रेस से ज्यादा अन्य दलों को मौका दिया है। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को इतनी बुरी हार का सामना करना पड़ा कि उस से 2 गुना ज्यादा वोट निर्दलीय को मिल गया। जबकि भाजपा की जीत हुई। सिवाना शायद बाड़मेर जिले की सबसे लॉ प्रोफाइल विधानसभा सीट है लेकिन दो नाम इस सीट पर पहली बार प्रमुखता से लिए जा रहे हैं जिनके कारण यह भी हॉट सीट की श्रेणी में आ सकती है। ये दो नए नाम हैं बीजेपी से क्षत्रिय युवक संघ के संस्थापक स्व. तनसिंह के पुत्र पृथ्वीसिंह रामदेरिया और कांग्रेस से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी जोधपुर के सुनील परिहार। तनसिंह बाड़मेर से दो बार सांसद और विधायक रहे थे लेकिन उनका दर्जा राजपूत समाज में एक महापुरुष का है क्योंकि उन्होंने क्षत्रिय युवक संघ की स्थापना कर राजपूत युवाओं को परंपराओं से जोड़ने और अनुशासित जीवन जीने की कला सिखाने का जोरदार अभियान चलाया जो आज तक जारी है और उनके अनुयायियों की संख्या लाखों में है। संयोग से यही वर्ष तनसिंहजी का जन्म शताब्दी वर्ष भी है और राजपूत समाज उनका शताब्दी समारोह नई दिल्ली में बड़े पैमाने पर मनाने की तैयारी कर रहा है। पृथ्वीसिंह और उनकी पत्नी पंचायत समिति सदस्य हैं निर्दलीय चुनाव लड़ते हुए दोनों ने 800 और 1300 वोटों से जीत दर्ज कर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई थी। 2018 में उन्हें कांग्रेस अपने पाले में लाना चाहती थी लेकिन वे नहीं गए। सुनील परिहार वैसे तो जोधपुर के उद्योगपति हैं लेकिन मुख्यमंत्री के बेहद करीबी कहे जाते है। उनका यहां फार्म हाउस भी है। और वे पिछले चार साल से यहां से तैयारी भी कर रहे हैं। लेकिन कांग्रेस के स्थानीय नेताओं से अलग ही अपने अंदाज में कार्य कर रहे है। नए चेहरों की चर्चा के बीच पुराने चेहरों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस सीट पर बीजेपी काबिज है। 2008 में यहां से बीजेपी के कानसिंह कोटड़ी बीएसपी के महेंद्र टाईगर को हराकर जीते थे। इस चुनाव में बसपा के महेंद्र टाइगर ने 28000 वोट लिए थे। 2013 के लहर वाले चुनाव बेहद दिलचस्प मुकाबला देखने को मिला। इस चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टी की ओर से नए चेहरों को मैदान में उतारा गया। जहाँ भाजपा ने हमीर सिंह भायल को अपना उम्मीदवार बनाया तो वही कांग्रेस की ओर से महंत निर्मलदास को चुनावी मैदान में उतारा गया। भाजपा के हम्मीरसिंह भायल ने कांग्रेस के निर्मलदास को आसानी से हरा दिया। 2018 में बीजेपी ने फिर से हम्मीरसिंह भायल पर दाव आजमाया लेकिन कांग्रेस ने यहां लगातार तीसरी बार चेहरा बदलते हुए पंकज प्रताप सिंह को उतार दिया। इसी क्षेत्र के होते हुए पंकज प्रताप को बाहरी बताकर उनका जोरदार विरोध हुआ और वे महज 20145 वोटों पर सिमट गए। पंकज प्रताप सिंह के टिकट से नाराज कांग्रेसियों के गुट ने फिर से बालाराम चौधरी को मैदान में उतारा। बालाराम ने 49700 वोट लिए और रालोपा के सत्ताराम देवासी ने 19124 वोट काटे। इसी चुनाव में बीजेपी का बागी मोर्चा भी खासा चर्चित रहा जिससे हम्मीरसिंह की राह मुश्किल हो गई थी लेकिन आखिर इस मोर्चे ने हम्मीरसिंह को समर्थन दे ही दिया, और एक बड़ा रोड शो करके बीजेपी के पक्ष में माहौल बना दिया। नतीजा हम्मीर सिंह के पक्ष में गया और वे महज 957 वोटों से जीतकर दूसरी बार विधानसभा पहुंच गए। लेकिन इस बीच सिवाना में बीजेपी का संगठन समाप्त प्राय: हो गया या कर दिया गया।
सिवाना सीट पर भाजपा मांगे परिवर्तन:
इस बार हम्मीरसिंह की राह बीजेपी के लोगों ने ही मुश्किल बना रखी है। भाजपा कार्यकर्ता कहते हैं कि उन्हें परिवर्तन चाहिए। यहां से दावेदार रहे युवा नेता सोहन सिंह भायल व गंगासिंह काठाड़ी ने पूरी ताकत झौंक रखी है। वही सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बीजेपी इस बार इस सीट पर बदलाव कर युवा चेहरे को मैदान में उतार सकती हैं। हालांकि हम्मीर सिंह टिकट और जीत को लेकर आश्वस्त हैं। यहां भाजपा विधायक होने के बावजूद दावेदारों की सूची लंबी है। खुद विधायक हम्मीरसिंह, पृथ्वीसिंह रामदेरिया, पूर्व विधायक कानसिंह कोटड़ी, उनके पुत्र खेतसिंह कोटड़ी, सोहनसिंह भायल, गंगासिंह काठाड़ी, युवा नेता जोगेंद्र सिंह सिलोर, जयराम प्रजापत और इंदाराम चौधरी। इनके अलावा अगर केंद्रीय मंत्री गजेंद्रसिंह शेखावत को बीजेपी विधानसभा चुनाव में उतारती है तो उनकी भी यह पसंदीदा सीट हो सकती है। पृथ्वीसिंह रामदेरिया और शेखावत करीबी मित्र हैं।
कांग्रेस में दावेदारों की सूची लंबी:
कांग्रेस से यहां सुनील परिहार के अलावा पंकज प्रतापसिंह, पूर्व जिला प्रमुख बालाराम चौधरी, पूर्व विधायक गोपाराम मेघवाल, ओमाराम मेघवाल, मुकनसिंह राजपुरोहित, गरिमा राजपुरोहित, भंवरलाल देवासी सहित कुल 23 दावेदार हैं। एक मजेदार तथ्य यह है कि यहां कांग्रेस में बायतू विधायक हरीश चौधरी बड़ा दखल रखते हैं। यहां एक हरीश गुट है। जिसमें सुनील परिहार के अलावा अन्य सभी दावेदार हैं। अब वे क्या गुल खिलाते हैं, यह समय बताएगा। रालोपा से इस बार जोधाराम चौधरी और बसपा से प्रत्याशी रहे महेंद्र टाइगर फिर तैयारी कर रहे हैं।
जातीय समीकरण:
सिवाना विधानसभा सीट के जातीय समीकरण की बात की जाए तो यहां 17.21 फीसदी अनुसूचित जाति के मतदाता हैं जबकि 8.81 फ़ीसदी अनुसूचित जनजाति के वोटर्स है। यह सीट कई दशकों तक एससी वर्ग की रही, लेकिन 2008 के बाद से यह सीट सामान्य वर्ग की है।
सिवाना विधानसभा सीट का इतिहास:
पहला विधानसभा चुनाव 1951:
सिवाना विधानसभा क्षेत्र का गठन 1951 में हुआ। इस चुनाव में कांग्रेस ने नंदकिशोर को चुनावी मैदान में उतारा तो वहीं राम राज्य परिषद की ओर से मोटाराम चुनावी मैदान में उतरे। जहां मोटाराम को 14095 वोट मिले तो वहीं कांग्रेस उम्मीदवार नंदकिशोर के खाते में महज 2762 वोट आये। इस चुनाव में राम राज्य परिषद के मोटाराम की प्रचंड जीत हुई।
विधानसभा चुनाव 1962:
इस चुनाव में यह सीट सामान्य से एससी वर्ग की सीट में बदल गई। कांग्रेस की ओर से हरीराम चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं उनके सबसे करीबी प्रतिद्वंदी रावत राम थे जो कि निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे। जबकि राम राज्य परिषद के लक्ष्मण दास ने भी ताल ठोकी। इस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार हरीराम की जीत हुई जबकि उनके करीबी प्रतिद्वंदी निर्दलीय उम्मीदवार रावत राम 4856 वोटों से संतोष करना पड़ा। जबकि राम राज्य परिषद के लक्ष्मण दास को 4,453 वोट मिले। हरिराम को 5,863 मतदाताओं ने वोट दिया।
विधानसभा चुनाव 1967:
इस चुनाव में यह सीट एससी वर्ग से फिर सामान्य सीट हो गई। कांग्रेस की ओर से हरिराम एक बार फिर चुनावी मैदान में थे, तो वही स्वतंत्र पार्टी की ओर से कालूराम ने ताल ठोकी। चुनावी नतीजे आए तो हरिराम के पक्ष में 7,503 वोट पड़े तो वहीं स्वतंत्र पार्टी के कालूराम को 10,282 वोट मिले और इस चुनाव में उनकी जीत हुई।
विधानसभा चुनाव 1972:
1972 के विधानसभा चुनाव में सिवाना विधानसभा सीट एससी कोटे में डाल दी गई। लिहाजा ऐसे में यहां के चुनावी समीकरण एक बार फिर बदल गए। इस चुनाव में कांग्रेस ने जेसा राम को अपना उम्मीदवार बनाया तो वहीं स्वतंत्र पार्टी से सवाइया उम्मीदवार बने। इस चुनाव में बदले समीकरणों का फायदा एक बार फिर कांग्रेस को मिला और कांग्रेस उम्मीदवार जेसा राम को 21,061 वोट मिले तो वहीं स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार को महज 5,346 वोटों से संतोष करना पड़ा।
विधानसभा चुनाव 1977:
1977 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर बाजी पलटने वाली थी, इस चुनाव में कांग्रेस ने फिर जेसा राम पर ही भरोसा जताया और उन्हें चुनावी मैदान में उतारा। वहीं जनता पार्टी की ओर से चेनाराम ने ताल ठोकी। इस चुनाव में 17,868 वोट पाकर चेनाराम की विजयी हुई, जबकि उस वक्त के मौजूदा विधायक जेसा राम को हार का सामना करना पड़ा। हालांकि दोनों उम्मीदवारों के बीच जीत और हार का अंतर महज 1000 वोटों का था।
विधानसभा चुनाव 1980:
1980 में कांग्रेस का विभाजन हो गया था और जनता पार्टी के उम्मीदवार रहे चेनाराम अब भाजपा के उम्मीदवार बने। जबकि कांग्रेस आई की ओर से धारा राम चुनावी मैदान में उतरे। इस चुनाव में कांग्रेस आई के प्रत्याशी धारा राम की 20,190 वोटों से जीत हुई। जबकि उस वक्त के मौजूदा विधायक रहे चेनाराम को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा।
विधानसभा चुनाव 1985:
इस चुनाव में रामराज्य पार्टी के टिकट पर सिवाना के पहले विधायक बने मोटाराम कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में उतरे जबकि बीजेपी ने अपना प्रत्याशी बदलते हुए हुकम राम को चुनावी मैदान में उतारा। इस चुनाव में सिवान के पहले विधायक रहे मोटाराम की 21,373 वोटों से जीत हुई। जबकि बीजेपी के प्रत्याशी हुकम राम को हार का सामना करना पड़ा।
विधानसभा चुनाव 1990:
1990 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने अपने पुराने उम्मीदवारों पर ही फिर से भरोसा जताया। हालांकि चुनावी नतीजे आए तो बाजी पलट चुकी थी। इस चुनाव में कांग्रेस के मोटाराम को 18,044 मत मिले तो वहीं बीजेपी के हुकम राम को 31,866 वोट मिले और उनकी जीत हुई।
विधानसभा चुनाव 1993:
1993 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस ने अपने-अपने उम्मीदवार बदल दिए। इस चुनाव में बीजेपी की ओर से टीकमचंद कांत उम्मीदवार बने तो वहीं कांग्रेस की ओर से गोपाराम मेघवाल उम्मीदवार बने। टीकमचंद कांत के लिए कहा जाता है कि उन्होंने पोस्ट मास्टर की नौकरी छोड़कर बीजेपी से टिकट हासिल किया था और उनकी मेहनत इस चुनाव में सफल रही और 34,421 मतों से उनकी जीत हुई।
विधानसभा चुनाव 1998:
इस विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस ने अपने पिछले उम्मीदवार पर ही भरोसा जताया और गोपाराम मेघवाल को ही टिकट दिया। भाजपा ने अपने मौजूदा विधायक होने के बावजूद प्रत्याशी को बदला और गेना राम को टिकट दिया। इस चुनाव में कांग्रेस की रणनीति सफल हुई। गोपाराम मेघवाल विधायक बने। हालांकि गोपाराम मेघवाल के जीत के बाद अब तक कांग्रेस यहां से चुनाव नहीं जीत पाई है।
विधानसभा चुनाव 2003:
2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उस वक्त के तत्कालीन विधायक गोपाराम मेघवाल पर ही भरोसा जताया तो वहीं उनके सबसे करीबी प्रतिद्वंदी 1993 में भाजपा के टिकट पर चुनाव जीत चुके टीकमचंद कांत रहे। हालांकि इस बार टीकमचंद कांत ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और उनकी 41,133 वोटों से जीत हुई।
विधानसभा चुनाव 2008:
2008 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर समीकरण बदल चुके थे। इस चुनाव में एससी सीट रही सिवाना एक बार फिर सामान्य वर्ग की सीट बन गई। इस चुनाव में बीजेपी की ओर से कानसिंह कोटडी चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं मायावती की बहुजन समाजवादी पार्टी की ओर से महेंद्र कुमार ने चुनावी ताल ठोकी। वहीं सामान्य सीट होने के बाद इस सीट पर कांग्रेस के टिकट पर बालाराम चौधरी ने ताल ठोकी। हालांकि इस चुनाव में बसपा के महेंद्र कुमार ने कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया और कांग्रेस उम्मीदवार बालाराम तीसरे स्थान पर रहे। जबकि भाजपा के कान सिंह ने बसपा के महेंद्र कुमार को 3,982 वोटों के अंतर से शिकस्त दी। इस चुनाव में कान सिंह की जीत हुई।
विधानसभा चुनाव 2013:
2013 के विधानसभा चुनाव में बेहद ही दिलचस्प मुकाबला देखने को मिला। इस चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टी की ओर से नए चेहरों को टिकट दिया गया। जहां भाजपा ने हमीर सिंह भायल को अपना उम्मीदवार बनाया तो वही कांग्रेस की ओर से महंत निर्मल दास चुनावी मैदान में उतरे। हालांकि प्रत्याशी बदलने के बावजूद भाजपा की जीत को कांग्रेस रोक नहीं पाई और हमीर सिंह भायल की 69,014 वोटों से जीत हुई।
विधानसभा चुनाव 2018:
2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार हमीर सिंह भायल को ही रिपीट करते हुए अपना उम्मीदवार बनाया। 2018 के विधानसभा चुनाव बाड़मेर की सिवाना सीट पर 2,42,581 मतदाताओं ने उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला किया। इस चुनाव में कांग्रेस की ओर से पंकज प्रताप सिंह चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं भाजपा ने हमीर सिंह भायल को टिकट दिया। वहीं कांग्रेस के टिकट पर 2008 में चुनाव लड़ चुके बालाराम चौधरी 2018 के विधानसभा चुनाव में निर्दलिय के तौर पर अपनी किस्मत आजमाने चुनावी मैदान में उतरे। इस बेहद ही रोमांचक मुकाबले में हमीर सिंह ने महज 957 वोटों के अंतर से जीत हासिल की जबकि बालाराम ने पूरा जोर लगा दिया लेकिन फिर भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में 32 प्रतिशत मतदाताओं ने भाजपा उम्मीदवार हमीर सिंह भायल का साथ दिया और उन्हें 997 वोटों के मार्जिन से जीत दिलवाई तो वहीं 31 प्रतिशत वोटों के साथ निर्दलीय उम्मीदवार बालाराम चौधरी दूसरे नंबर पर रहे जबकि कांग्रेस उम्मीदवार पंकज प्रताप सिंह को महज राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के उम्मीदवार सातारा से 1 प्रतिशत ज्यादा वोट मिला।
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